आवेशित संधारित्र की ऊर्जा क्या है?
संधारित्र को आवेशित करने में किया गया कार्य उसकी स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। यह कार्य अपनाए गए तरीके पर निर्भर नहीं करता है इसका मान केवल प्रारंभिक एवं अंतिम स्थितियों में कार्य के अर्थात स्थितिज ऊर्जा के अंतर पर निर्भर करता है।
संधारित्र में संचित ऊर्जा क्या है?
प्रत्येक चालक को आवेशित करने में कुछ कार्य करना पड़ता है। यह कार्य चालक में विद्युत स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित रहता है।
आवेश का पृष्ठ घनत्व क्या है?
हम जानते हैं कि किसी चालक को आदेश दिया जाता है तो संपूर्ण आवेश उसके बाह्य पृष्ठ पर ही रहता है। “किसी चालक के एकांक क्षेत्रफल पर आवेश की मात्रा को आवेश का पृष्ठ घनत्व कहते हैं।”
संवहन विसर्जन क्या है?
“वायु के कणों द्वारा आवेश के बाहर जाने की क्रिया को संवहन विसर्जन कहते हैं। “
किसी वायु के कण के द्वारा आवेश का बाहर जाना संवहन विसर्जन कहलाता है।
किसी वायु के कण के द्वारा आवेश का बाहर जाना संवहन विसर्जन कहलाता है।
वैद्युत पवन क्या है?
हम जानते हैं कि वायु के कणों द्वारा आवेश के बाहर जाने की क्रिया को संवहन विसर्जन कहते हैं। वायु की इस संवहन धारा को विद्युत पवन कहते हैं।
वान-डी ग्राफ जनित्र क्या है?
सन 1931 में प्रोफेसर आर. जे. वान-डी ग्राफ ने ऐसे विद्युत उत्पादक मशीन अर्थात जनित्र का निर्माण किया जिससे 1 लाख वोल्ट या इससे भी अधिक विभवांतर उत्पन्न किया जा सकता है। इस जनित्र को उनके नाम पर ही वान-डी ग्राफ जनित्र कहते हैं।
वान-डी ग्राफ जनित्र का सिद्धांत।
वान-डी ग्राफ जनित्र की कार्यविधि नुकीले भागो की क्रिया पर आधारित है। यदि किसी धन आवेशित चालक का कोई सिरा नुकीला है तो नुकीले सिरे पर आवेश का पृष्ठ घनत्व अधिक होता है। इस स्थिति में नुकीले भाग से विद्युत पवन उत्पन्न हो जाता है जिसमें धनावेश होता है।
वान-डी ग्राफ जनित्र के उपयोग।
(1) उच्च विभवांतर उत्पन्न करने के लिए।
(2) नाभिकीय भौतिकी के अध्ययन में।
वान-डी ग्राफ जनित्र के दोष।
(1) बड़ा आकार होने के कारण यह असुविधाजनक होता है।
(2) उच्च विभव के कारण यह खतरनाक होता है।
(2) उच्च विभव के कारण यह खतरनाक होता है।
विद्युत क्षेत्र का ऊर्जा घनत्व क्या है?
“प्रति एकांक आयतन में संचित ऊर्जा को विद्युत क्षेत्र का ऊर्जा घनत्व कहते हैं। ”