क्रोमैटोग्राफी क्या है ? क्रोमैटोग्राफी किसने प्रारंभ की? वर्णलेखिकी तकनीकों के सिद्धान्त
क्रोमैटोग्राफी क्या है ? (What is Chromatography)
क्रोमैटोग्राफी वह विधि है जिसमें विभिन्न प्रकार के पदार्थों के मिश्रण में से प्रत्येक पदार्थ को पृथक् कर पहचाना जाता है। पृथक्करण में दो फेजेज (Phases) का उपयोग होता है, एक फेज स्थिर तथा दूसरा गतिशील होता है। पदार्थों का पृथक्करण स्थिर फेज की सापेक्ष गति पर निर्भर करता है। सामान्य शब्दों में, क्रोमैटोग्राफी विश्लेषण करने की वह तकनीक है जिसमें विभिन्न यौगिकों को स्थिर और गतिशील फेज के प्रति लगाव (Affinity) में अन्तर के आधार पर पृथक् कियाजाता है।
क्रोमैटोग्राफी किसने प्रारंभ की?
क्रोमैटोग्राफी एम. स्वैट (M. Tswett) नामक वनस्पति वैज्ञानिक ने 1886 में प्रारंभ की थी। क्रोमैटोग्राफी का यूनानी (Greek) भाषा में अर्थ है ‘रंगों में लिखना’। स्वैट ने ईथर, क्लोरोफिल या पेट्रोलियम के एक्सट्रैक्ट को कैल्सियम कार्बोनेट के स्तम्भ द्वारा पृथक् किया। उसने विभिन्न रंगों के पदार्थों को पेट्रोलियम के साथ कैल्सियम कार्बोनेट भरे हुए काँच के स्तम्भ में उड़ेल दिया। रंगीन पदार्थ स्तम्भ के विभिन्न स्थानों पर सोख लिये गये। इस प्रकार विभिन्न रंजकों के क्षेत्र (Zone) बन गये। कैल्सियम कार्बोनेट के विभिन्न क्षेत्रों को पृथक्कर लिया गया तथा उससे विभिन्न रंजक अलग कर लिये गये।
लाइसैगैन्ना ने 1943 में सर्वप्रथम अवशोषक कागज का उपयोग किया तथा उसने दो प्रकार से क्रोमैटोग्राफी करने का प्रयास किया। आधुनिक समय की क्रोमैटोग्राफी तक पहुँचने में ब्रिटिश वैज्ञानिकों कॉन्सडैन (Consden), गॉर्डेन (Gorden), मार्टिन (Martin) और सायन्ज (Synge) ने 1944 में महत्वपूर्ण योगदान किया। मूलत: ये वैज्ञानिक अमीनो अम्लों के मिश्रणों को कॉउन्टरकरेन्ट एक्ट्रैक्शन (Countercurrent extraction) विधि द्वारा विश्लेषित करना चाहते थे किन्तु इस तरीके में दोनों विलायक इमल्सीफाइ (Emulsify) हो जाते थे तथा उन्हें पृथक् करना कठिन होता था। उन्होंने कागज का प्रयोग इसलिये किया, क्योंकि कागज में छिद्र होते हैं तथा उनके द्वारा विभिन्न अमीनो अम्लों को पृथक् किया जा सकता है। बार-बार प्रयोग करने के उपरान्त वे विभिन्न अमीनो अम्लों को पृथक् करने में बहुत थोड़े समय में सफल हो गये।
वर्णलेखिकी तकनीकों के सिद्धान्त (Principles of Chromatographic Techniques)
सभी की वर्णलेखिकी का आधार पार्टीशन अथवा वितरण गुणांक या Kd होता है जो किसी यौगिक के दो अमिश्रणीय प्रावस्थाओं के मध्य वितरण को दर्शाता है। समान आयतन के दो अमिश्रणीय विलायकों A तथा B के मध्य वितरित होने वाले किसी यौगिक के लिए वितरण गुणांक (Kd) स्थिर होता है।
विलायक के स्थान पर दो प्रावस्थाओं के मध्य वितरण को लिया जा सकता है। अतः यदि सैलिसिक अम्ल एवं बेन्जीन के मध्य किसी पदार्थ का वितरण गुणांक 0.5 है तो इसका मतलब यह हुआ कि उस पदार्थ की सान्द्रता बेन्जीन में सैलिसिक अम्ल से दुगुनी है।
इसी प्रकार हम प्रभावी वितरण गुणांक (Effective distribution coefficient) का भी आकलन कर सकते हैं।
अर्थार्थ प्रभावी वितरण गुणांक = दोनों प्रावस्थाओं के आयतन का अनुपात 🗙 Kdi