धारा का उष्मीय प्रभाव क्या है? धारा के उष्मीय प्रभाव से संबंधित जूल का प्रथम, द्वितीय ओर तृतीय नियम

धारा का उष्मीय प्रभाव क्या है? धारा के उष्मीय प्रभाव से संबंधित जूल का प्रथम, द्वितीय ओर तृतीय नियम

धारा का उष्मीय प्रभाव क्या है? 

धारा का ऊष्मीय प्रभाव – : “जब किसी चालक तार में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो वह तार गर्म हो जाता है इसे धारा का उष्मीय प्रभाव कहते हैं। ”

                                          वास्तव में जब किसी चालक तार के सिरों के बीच विभवांतर लगाया जाता है। तो इलेक्ट्रॉन क्षेत्र की विपरीत दिशा में त्वरित होकर गति करने लगते हैं, तथा रास्ते में आने वाले परमाणुओं और धन आयनो से टकराते हैं तथा ऊर्जा खोते हैं इसकी पूर्ति स्त्रोत द्वारा की जाती है यह खोई हुई ऊर्जा ऊष्मा के रूप में प्रकट होती है अर्थात स्त्रोत द्वारा किया गया कार्य उत्पन्न ऊष्मा के बराबर होता है।

स्त्रोत द्वारा किया गया कार्य

कार्य  = विभव × आवेश
                                              ( चुकी  I = Q / t)
w = VQ                                 ( It  = Q)
                                                 
w = VIt                                   (चुकी   R = V/I)
w = VRIt                                      ( IR = V )

ऊष्मा H = I²Rt जुल

जुल का नियम। 

धारा के ऊष्मीय प्रभाव से संबंधित जुल के नियम। 

जुल का प्रथम नियम निम्न हैं – :

जुल का प्रथम नियम – : “किसी चालक तार में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर उसमें उत्पन ऊष्मा H प्रवाहित धारा I के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होती है। ”
अर्थात्  H  ∝ I²


जुल का द्वितीय नियम निम्न हैं – :

जुल का द्वितीय नियम – :  “किसी चालक तार में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर उत्पन ऊष्मा H तार के प्रतिरोध R के अनुक्रमानुपाती होती है”। 
अर्थात H  ∝  R


जुल का तृतीय नियम निम्न हैं – :

जुल का तृतीय नियम – : “किसी चालक तार में विद्युत धारा प्रवाहित करने पर उत्पन्न ऊष्मा समय t के अनुक्रमानुपाती होती है।  
अर्थात्  H ∝ t


अतः H ∝ t²Rt
       H =  kI²Rt
                      
 (जहां k एक नितांक है यदि k=1 हो तो) 

H = I²Rt  जुल 

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