हाइगन का तरंग-सिद्धान्त (Huygen’s Wave Theory)

 हाइगन का तरंग-सिद्धान्त (Huygen’s Wave Theory)

हाइगन का तरंग-सिद्धान्त (Huygen's Wave Theory)

सन् 1678 में हॉलैण्ड के वैज्ञानिक क्रिश्चियन हाइगन

(Christian Huygen) ने प्रकाश-संचरण से सम्बन्धित तरंग सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था, जो निम्नलिखित हैं-

(i) प्रकाश तरंगों के रूप में चलता है।

(ii) ये तरंगें सभी दिशाओं में अत्यधिक

वेग (3×10 मीटर / सेकण्ड) से चलती

हैं तथा जब ये किसी वस्तु से परावर्तित

होकर हमारी आँखों पर पहुँचती हैं, तो हमें

वस्तु की उपस्थिति का आभास होता है।

(iii) सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में काल्पनिक

क्रिश्चियन हाइगन

माध्यम ईथर व्याप्त है। इस माध्यम में से

होकर तरंगें चलती हैं।

(iv) ईथर भारहीन तथा समांगी होता है। इसका घनत्व बहुत ही कम तथा प्रत्यास्थता बहुत अधिक होती है।

(v) विभिन्न रंगों का आभास तरंगदैर्ध्य में अन्तर के कारण होता है।

(vi) प्रारम्भ में प्रकाश-तरंग को अनुदैर्ध्य (Longitudinal) माना गया था, किन्तु बाद में ध्रुवण की व्याख्या करने के लिए इसे अनुप्रस्थ (Transverse) माना गया।

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